कुछ अनकही...
सोमवार, 3 दिसंबर 2018
गुरुवार, 29 नवंबर 2018
बुधवार, 28 नवंबर 2018
प्रिय कुछ तो मुझको कहती
देवदूत उतरा अम्बर से
कांप उठा अनजाने डर से
तन्हा दिल मेरा घबराया
छाई उदासी मन में
मेरे अंतर्मन की पीड़ा, झर-झर कर नयनों से बहती
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
देख तुम्हारी नश्वर देह को
अवसाद निराशा छाई सबको
मेरे मन के उपर छाया
अंधकार पल भर में
मुझको दिख रही थी आज, अपनी प्यारी दुनिया ढहती
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
मधुऋतु में पतझड़ छाया
रोम-रोम मेरा अकुलाया
तन्हाई का जीवन पाया
तन्हाई का जीवन पाया
जीवन के झांझर में
एक नजर मुझे देख कर, कुछ अपने मन की कह जाती
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
आभास हो गया था मन को
आज मेरे साथ
जो घटनाएँ घट रही थी
उससे मेरा मन सशंकित था।
सपने में भी आज मुझे
कुछ इसी तरह का आभास
पहले से ही हो गया था।
कृष्ण की मूर्ति को
पूजा में रखते समय
हाथ से उलटा रखा जाना।
पूजा के बर्तनों को
मंदिर में रखते हुए
हाथ से छूट कर गिर जाना।
आज कुछ अप्रत्याशित
घटित होने वाला है
यह उसी का पूर्वाभाष था।
जीवात्मा जगत से
सुक्ष्म तरंगों के माध्य्म से
कोई सन्देश भेज रहा था।
ब्रह्माण्ड में
कोई शक्ति विध्यमान है
जो पूर्वाभास करा देती है।
कोई पृष्ठभूमि
तैयार हो रही है
संकेतो में समझा देती है।
संकेतो में समझा देती है।
६ जुलाई २०१४ का
वह मनहुस दिन
मेरे जीवन में कहर बन कर आया।
मेरी जीवन संगिनी
को सदा-सदा के लिए
मुझ से छीन कर ले गया।
तुम से फिर मिलूंगा
तुम्हारे महाप्रयाण को देख
आँखों से अश्रुओं की
सरिता बहने लगी
साँसें अंदर से
लम्बी और गहरी
निकलने लगी
मैं तुम्हारे मुखमंडल को
दोनों हाथों से सहलाने लगा
काश! तुम कुछ बोलो
अपनी अंतिम बेला में
दो शब्द कहने के लिए
काश ! तुम अपना मुँह खोलो
लेकिन तुम तो
अलविदा की बेला में भी
निस्पृह थी
गर्व से ऊँचा मस्तक
शान्ती से मुंदी आँखें
त्याग की प्रतिमूर्ति लग रही थी
लेकिन सुकून था मेरे दिल में
एक दिन तुम से फिर मिलूंगा
उस पराजगत में ही सही
लेकिन मिलूंगा।
आँखों से अश्रुओं की
सरिता बहने लगी
साँसें अंदर से
लम्बी और गहरी
निकलने लगी
मैं तुम्हारे मुखमंडल को
दोनों हाथों से सहलाने लगा
काश! तुम कुछ बोलो
अपनी अंतिम बेला में
दो शब्द कहने के लिए
काश ! तुम अपना मुँह खोलो
लेकिन तुम तो
अलविदा की बेला में भी
निस्पृह थी
गर्व से ऊँचा मस्तक
शान्ती से मुंदी आँखें
त्याग की प्रतिमूर्ति लग रही थी
लेकिन सुकून था मेरे दिल में
एक दिन तुम से फिर मिलूंगा
उस पराजगत में ही सही
लेकिन मिलूंगा।
एक कहानी का अंत
अर्थी को कंधों से निचे उतार
शमसान घाट पर बने
चबूतरे पर रख दिया गया
पंडित द्वारा सभी क्रियाएं
सम्पन कर लेने के बाद
देह को चिता पर लिटा दिया गया
शमसान घाट पर बने
चबूतरे पर रख दिया गया
पंडित द्वारा सभी क्रियाएं
सम्पन कर लेने के बाद
देह को चिता पर लिटा दिया गया
लाया हुआ सारा सामान
भी चिता पर रख सजा दिया गया
चन्दन की लकड़ियों पर
घी उड़ेल दिया गया
चिता के चारों गिर्द घूम
पानी का मटका भी
फोड़ दिया गया
बेटे ने मुखाग्नि भी दे दी।
कल ठंडी पड़ी आग से
बची-खुची हड्डियां भी इकट्ठी कर
गंगा को समर्पित हो जाएगी
और इसी के संग बह जाएगी
मेरे जीवन की सभी आशाएं
अंत हो जाएगा एक कहानी का
जो पूरी लिखी जाने से
पहले ही दम तोड़ गई।
अलविदा की बेला
तुम तो मुझे छोड़ कर
कहीं नहीं जाती
अकेली
फिर आज क्यों
मुझे छोड़ चली गयी
अकेली
मेरे घर पहुँचने तक भी
तुमने नहीं किया
इन्तजार
नहीं दिया तुमने मुझे
दो बात करने का
भी अधिकार
थोड़ी देर रुक जाती
तो तुम्हारा क्या
बिगड़ जाता
तो तुम्हारा क्या
बिगड़ जाता
अलविदा की बेला में
दिल की बात ही
कह लेता
दिल की बात ही
कह लेता
लेकिन तुम तो
मेरे पहुँचने से पहले ही
चली गई
इतने लम्बे सफर में
मुझे छोड़ अकेले ही
निकल गई
मत चली जाना इतनी दूर
कि मेरी आवाज भी
नहीं सुन सको
अपने भरे पुरे परिवार को
फिर से देख भी
फिर से देख भी
नहीं सको
जल्दी लौट आना
मैं अकेले जीवन-पथ पर
नहीं चल पाउँगा
नहीं चल पाउँगा
तुम्हारी जुदाई का दर्द
मैं सहन नहीं कर
पाउँगा।
मैं सहन नहीं कर
पाउँगा।
तुम साथ छोड़ कर चली गई
सुख गया जीवन का उपवन, रहा कभी जो हरा - भरा
पतझड़ आया जीवन में, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
बिस्तर की हर सिलवट से, महक तुम्हारी ही आती
सांसें अटकी प्राणों में, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
पतझड़ आया जीवन में, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
जीवन के राह - सफर में, खुशियों के दिन बीत गए
चलते-चलते जीवन में, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
मैंने आँखों में डाला था, जीवन के सपनों का काजल
बिच राह में टूटे सपने, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
बिच राह में टूटे सपने, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
दुःख मेरा अब क्या बतलाऊँ, दिल रोता है रातों में
पलकें भीगे अश्कों से, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
पलकें भीगे अश्कों से, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
बिस्तर की हर सिलवट से, महक तुम्हारी ही आती
सांसें अटकी प्राणों में, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
गीत अधूरे रह गए मेरे, अब क्या ग़मे बयान करुं
बिखरी सारी आशाएं, तुम साथ छोड़ कर चली गई।
आज कहाँ हो तुम ?
आज तुम्हें गए
दस दिन हो गए लेकिन
लगता है जैसे कल की बात हो
पंडित ने आज
दस-कातर करवा दिए
कल नारायण बलि भी करा देगा
भेजेगा छींटे
घर का शौक मिटाने
क्या वो छींटे मेरे मन के
शौक को भी मिटा पायेंगे
बारहवें के बाद तो
बंधु-बांधव भी चले जायेंगे
संग रहेगी केवल तुम्हारी यादें
तुम्हारी यादें
जो अब जीवन भर
जो अब जीवन भर
आँखों से अश्रु बन बहेगी
तुम जो मुझे
कभी उदास देखना भी
पसंद नहीं करती थी
कभी उदास देखना भी
पसंद नहीं करती थी
आज मेरी आँखों से
अविरल अश्रु धारा बह रही है
अविरल अश्रु धारा बह रही है
आज कहाँ हो तुम ?
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे
साथ मेरा बचपन का छुटा
मेरे मन का मीत जो रुठा,
जीवन के मिट गए नज़ारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
सुकून नहीं अब दिल को मेरे
दुःख-दर्द बन गए साथी मेरे,
जीवन के सब सपने बिखरे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
विरही मन को दर्द रुलाए
याद तुम्हारी जिया जलाए,
बहते आँखों से अश्रु पनारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
जब-जब याद तुम्हारी आए
पीड़ा का सागर लहराए,
जीवन के बुझ गए सितारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
मेरे सारे स्वप्न खो गए
मन वीणा के तार टूट गए,
छूट गए अब सभी सहारे
कैसे जीवूं बिना तुम्हारे।
अब गीत नहीं लिख पाउँगा
बिना तुम्हारे मेरा मन
दिल को कैसे समझाऊँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
बेचैनी से अकुलाएगा
याद तुम्हारी आएगी
नयन नीर बरसायेगा
इस जीवन में तुमको मैं
भूल कभी नहीं पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
भूल कभी नहीं पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
संध्या की लाली जब
दूर क्षितिज पर छाएगी
चरवाहें घर को लौटेंगे
सांध्य रागिनी गाएगी
मैं बैठा चुपचाप सुनूंगा
साथ नहीं दे पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
होली के आने की बेला
शोर मचेगा गलियों में
धूम मचेगी रंग उड़ेगा
एक बार फिर आँगन में
याद तुम्हारी साथ लिए
याद तुम्हारी साथ लिए
मैं सपनों में खो जाउँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
सावन के कजरारे बादल
आसमान में छाएंगे
बरखा बरसेगी चहुँ ओर
नृत्य मयूर दिखलाएंगे
तुम से मिलने की चाह लिएदिल को कैसे समझाऊँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
अप्रत्यासित मिलन
तुम से बिछुड़े हुए
आज पन्द्रह दिन हो गए,
आये हुए बन्धु -बांधव भी
घरों को लौट गए
तुम्हारी मुँह बोली बहन
फ्रांसिस स्टुवर्ड अभी यहीं है
वो थोड़े दिन सब के साथ
रहना चाहती है
आज शाम उसने मुझे
बाहर घूमने के लिए कहा,
मेरा मन नहीं था लेकिन उसके
आग्रह को टाल भी नहीं सका
हम उसी पार्क में चले गए
जहाँ तुम रोज घुमा करती थी
उस बैंच पर भी बैठे
जहां तुम बैठा करती थी
घूमते-घूमते अचानक
हमारे सामने एक
विद्युतकणों का पुंज
साकार हो गया,
मेरे सारे शरीर में
एक ठंडी लहर सी दौड़ गयी
मैं पसीने से तर-बतर हो गया
फ्रांसिस ने मुझसे कहा--
आत्माऐं इस माध्यम से
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है
आप भाग्यशाली है
आज पन्द्रहवें दिन वह आपसे
विदा लेने आई है
आइये हम दोनों
उनकी मंगल कामना के लिए
प्रभु से प्रार्थना करें
आज ख़ुशी मन से
उन्हें हम विदा करें।
फरीदाबाद
२० जुलाई, २०१४
फ्रांसिस स्टुवर्ड पिट्सबर्ग (अमेरिका) में रहती है। वह मेरी स्वर्गीय धर्मपत्नी सुशीला कांकाणी की मुँह बोली बहन है। धर्म से वो क्रिश्चियन है, लेकिन बौद्ध धर्म में आस्था रखती है। जहां आत्मा और परमात्मा के रिश्ते को बहुत गहराई से समझा जाता है। उसकी बेटी नैगली स्टुवर्ड अमेरिका में बौद्ध धर्म पर रिसर्च कर रही है। उसने मुझे बताया कि सुखी आत्माएँ धरती पर अपने प्रियजनों से मिलने आती है और समय-समय पर जीवात्मा जगत से
आज पन्द्रह दिन हो गए,
आये हुए बन्धु -बांधव भी
घरों को लौट गए
तुम्हारी मुँह बोली बहन
फ्रांसिस स्टुवर्ड अभी यहीं है
वो थोड़े दिन सब के साथ
रहना चाहती है
आज शाम उसने मुझे
बाहर घूमने के लिए कहा,
मेरा मन नहीं था लेकिन उसके
आग्रह को टाल भी नहीं सका
हम उसी पार्क में चले गए
जहाँ तुम रोज घुमा करती थी
उस बैंच पर भी बैठे
जहां तुम बैठा करती थी
घूमते-घूमते अचानक
हमारे सामने एक
विद्युतकणों का पुंज
साकार हो गया,
मेरे सारे शरीर में
एक ठंडी लहर सी दौड़ गयी
मैं पसीने से तर-बतर हो गया
फ्रांसिस ने मुझसे कहा--
आत्माऐं इस माध्यम से
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है
आप भाग्यशाली है
आज पन्द्रहवें दिन वह आपसे
विदा लेने आई है
आइये हम दोनों
उनकी मंगल कामना के लिए
प्रभु से प्रार्थना करें
आज ख़ुशी मन से
उन्हें हम विदा करें।
फरीदाबाद
२० जुलाई, २०१४
फ्रांसिस स्टुवर्ड पिट्सबर्ग (अमेरिका) में रहती है। वह मेरी स्वर्गीय धर्मपत्नी सुशीला कांकाणी की मुँह बोली बहन है। धर्म से वो क्रिश्चियन है, लेकिन बौद्ध धर्म में आस्था रखती है। जहां आत्मा और परमात्मा के रिश्ते को बहुत गहराई से समझा जाता है। उसकी बेटी नैगली स्टुवर्ड अमेरिका में बौद्ध धर्म पर रिसर्च कर रही है। उसने मुझे बताया कि सुखी आत्माएँ धरती पर अपने प्रियजनों से मिलने आती है और समय-समय पर जीवात्मा जगत से
सुक्ष्म तरंगों के माध्य्म से सन्देश भी भेजती रहती है।
मजा नहीं आता
यूँ तो चमन में बहुत से फूल खिले हैं मगर
मेरी चाहत का फूल अब नजर नहीं आता।
मेरी चाहत का फूल अब नजर नहीं आता।
तुम तो बिछुड़ गई जीवन के राहेसफर में
मुझे तो बिना तुम्हारे जीना भी नहीं आता।
दिन ढ़लते ही जलने लगते हैं यादों के दीप
अब तो रातों में सुहाना सपना भी नहीं आता।
संसार में भरे पड़े हैं सुन्दर से सुन्दर नज़ारे मगर तुम्हारा निश्छल प्रेम नजर नहीं आता।
तुम से मिले विरह के घावों को मैं सह रहा हूँ
लोग कहते हैं इस दर्द का मरहम नहीं आता।
जीवन में छा गए हैं तन्हाई और ग़मों के अँधेरे
सांसे चलती है मगर जीने का मजा नहीं आता।
कुछ तो कह कर जाती
आज अचानक
सुना हो गया मेरा जीवन
क्या गलती की थी मैंने
जो मिला विछोह का
इतना बड़ा दर्द
अब तो आजीवन
अफसोस ही बना रहेगा कि
अंत समय भी नहीं था पास तुम्हारे
तुमने इतना वक्त भी नहीं दिया
कि आकर दो बात करता तुमसे
लोग पूरी करते है शतायु
अभी तो कईं बरस बाकी थे
रुक जाती कुछ और
भोगती जीवन का सुख
करते-करते सबकी देखभाल
अभी जाकर ही तो मिला था आराम
चार-चार बेटे-बहुएं
सात पोते-पोतियाँ
भरा-पूरा परिवार
फिर क्यों रुठ गई अचानक
चली गई अनंत में
अब कहाँ खोजें और कहाँ ढूँढें
कोई अता-पता भी तो नहीं
शिकायत करें तो भी किससे
तुम तो चली गई
काश ! जाने से पहले
कुछ तो कह कर जाती।
सुना हो गया मेरा जीवन
क्या गलती की थी मैंने
जो मिला विछोह का
इतना बड़ा दर्द
अब तो आजीवन
अफसोस ही बना रहेगा कि
अंत समय भी नहीं था पास तुम्हारे
तुमने इतना वक्त भी नहीं दिया
कि आकर दो बात करता तुमसे
लोग पूरी करते है शतायु
अभी तो कईं बरस बाकी थे
रुक जाती कुछ और
भोगती जीवन का सुख
करते-करते सबकी देखभाल
अभी जाकर ही तो मिला था आराम
चार-चार बेटे-बहुएं
सात पोते-पोतियाँ
भरा-पूरा परिवार
फिर क्यों रुठ गई अचानक
चली गई अनंत में
अब कहाँ खोजें और कहाँ ढूँढें
कोई अता-पता भी तो नहीं
शिकायत करें तो भी किससे
तुम तो चली गई
काश ! जाने से पहले
कुछ तो कह कर जाती।
अब के बिछुड़े फिर न मिलेंगे
लहर सरीखा घुलना-मिलना, अपना रहता था
हवा सरीखा बहते रहना, अपना जीवन था
पलक झपकते छलिया सी, तुम तो चली गई
ऐसा नहीं चाहा था मैंने
बिच राह हम बिछुड़ेंगे
यह नहीं सोचा था मैंने।
बार-बार मिलना जैसे, उत्सव लगता था
मीठे-मीठे बोल तुम्हारे, अमृत लगता था
गाते-गाते जीवन गीत, तुम तो चली गई
ऐसा नहीं चाहा था मैंने
फासले ऐसे भी होंगे
यह नहीं सोचा था मैंने।
भोला-भोला रूप तुम्हारा, परियों से भी प्यारा था
चूड़ी-बिछिया-पायल से, खनकता सारा आँगन था
बुझ न सकी प्यास अधरों की, तुम तो चली गई
ऐसा नहीं चाहा था मैंने
मुस्कानें मुझसे रुठेगी
यह नहीं सोचा था मैंने।
साँसों का निश्वास तुम्हारा, चन्दन जूही सुवास था
आँखों में खिलता रहता, प्यार भरा मधुमास था
रीत गया संगीत प्यार का, तुम जो चली गई
ऐसा नहीं चाहा था मैंने
अब के बिछुड़े फिर न मिलेंगे
यह नहीं सोचा था मैंने।
आज भी तुम्हें पुकारती है
वो गीता
जिसे तुम रोज पढ़ा करती थी
अपने ममता भरे स्वर में
आज भी तुम्हें पुकारती है।
वो धौली
जिसे तुम रोज सुबह
अपने हाथ से रोटी खिलाती थी
आज भी दरवाजे पर रंभाती है।
वो पंछी
जिन्हें तुम रोज
दाना-पानी दिया करती थी
आज भी छत पर चहचहाते हैं।
वो धौली
जिसे तुम रोज सुबह
अपने हाथ से रोटी खिलाती थी
आज भी दरवाजे पर रंभाती है।
वो पंछी
जिन्हें तुम रोज
दाना-पानी दिया करती थी
आज भी छत पर चहचहाते हैं।
वो तुलसी
जहाँ तुम रोज घी का
दीपक जलाया करती थी
आज भी तुम्हारी राह टेरती है।
वो बिंदिया
जिसे तुम रोज दर्पण के
किनारे लगाया करती थी
आज भी तुम्हारी राह देखती है।
वो लाडली
पोती आयशा जिसे तुम
रोज लोरियाँ सुनाया करती थी
रोज लोरियाँ सुनाया करती थी
आज भी तुम्हें याद करती है।
फिर याद तुम्हारी आई
तुमसे बिछुड़े हुए
एक महीना हो गया लेकिन
मन आज भी नहीं मानता
सोचता हूँ जैसे ही घर पहुँचूंगा
तुम सदा की भाँति मुझे
दरवाजे पर मुस्कुराती मिलोगी
और कहोगी--
हाथ मुँह धो कर
कपड़े बदल लीजिए--
आज मैंने आपकी पसंद का
खाना बनाया है
गुंवार फली और
काचरे की सब्जी के साथ
बाजरे की रोटी और गुड़
आपको दोपहर में
चाय के साथ केक पसंद है
मैंने कल शाम को ही
केक बना लिया था
पाईनेपल और
हेलेपिनो मंगा रखा है
शाम को बना दूंगी पिज्जा
काश ! ऐसा ही आज होता
लेकिन तुम तो इतनी दूर
चली गई कि मैं आवाज भी दूंगा
तो वो भी लौट आएगी
तुम्हारा हाथ
पकड़ने के लिए
हाथ बढ़ाऊंगा तो वो भी
खाली हथेली लौट आएगी।
सांझ सुहानी ढल गई
मन का आँगन सूना हो गया,जीवन वैभव चला गया
सुख गया सुखों का झरना, सहपथिक भी चला गया।
आँखों से अश्रु ढलके,जब-जब उसकी यादें आई।
सुख गया सुखों का झरना, सहपथिक भी चला गया।
साथ रह गयी केवल यादें, उजले पल सब चले गए
खुशियाँ निकल गई जीवन से,सुन्दर सपने टूट गए।
रीत गया संगीत प्यार का, रुठ गई कविता मन की
यादों में अब शेष रह गई, सुधियाँ चन्दन के वन की।
हरदम उसकी यादें आती, दिल तड़पता रातों में मेरे मन की पीड़ा का अब, दर्द झलकता आँखों में।
बीत गया सुखमय जीवन,अन्तस् पीड़ा भर आई
गीत अधूरे रह गए मेरे, मन की मृदुल कल्पना खोई
जीवन पथ पर चलते - चलते, सांझ सुहानी ढल गई।
मंगलवार, 27 नवंबर 2018
आधे-अधूरे चले जाना
उस दिन तुम
मुझे बिना बताये ही
समस्त बंधनों से मुक्त हो
उड़ चली अनंत आकाश में
तुम्हारा इस तरह
अचानक चले जाना
मुझे बहुत अखरा मन में
तुम अपना
सारा सामान भी तो
मेरे पास ही छोड़ गई
बिना कुछ साथ लिए
खाली हाथ ही
चली गई
तुम्हारा इस तरह
आधे-अधूरे चले जाना
मुझे अच्छा नहीं लगा
तुम्हारे विच्छोह के
दर्द को सहना मुझे
सबसे बड़ा भार लगा
आज जब भी
तुम्हारी कोई चीज
मेरी नजरों के सामने आती है
कुरेदती है विरह के जख्मों को
नहीं सोचा था कभी कि
एक दिन ऐसा भी आएगा
जब मेरे नैन तरस जायेंगे
तुम्हारी एक झलक पाने को।
आज तुम नहीं थी
सुबह का सूरज
आज भी निकला था
आज भी निकला था
चाँद आज भी चांदनी संग आया था
तारे आज भी झिलमिला रहे थे
लेकिन आज तुम नहीं थी।
बगीचे में फूल आज भी खिले थे
तितलियाँ आज भी
फूलों पर मंडरा रही थी
भँवरें आज भी गुनगुना रहे थे
लेकिन आज तुम नहीं थी।
बच्चे आज भी गलियों में खेल रहे थे
दरवाजे पर काली गाय
आज भी रम्भा रही थी
आज भी रम्भा रही थी
कबूतर आज भी छत पर आए थे
लेकिन आज तुम नहीं थी।
पूजा की घंटियों के संग
सवेरा आज भी हुआ था
सवेरा आज भी हुआ था
मंदिर में आरती आज भी गाई गई थी
तुलसी चौरे पर आज भी
दीपक जला था
दीपक जला था
लेकिन आज तुम नहीं थी।
तुम जो चली गई
मंजिलें अब जुदा हो गई, अंजानी अब राहें हैं
जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो चली गई।
जीवन मेरा रीता-रीता,ऑंखें हैं अब भरी-भरी
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो चली गई।
किससे मन की बात करूं,साथ तुम्हारा रहा नहीं
अंत समय मैं साथ नहीं था, सदा रहेगा इसका गम
तुम भी थोड़ा धीरज रखती, बिना मिले ही चली गई।
जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो चली गई।
साथ जियेंगे साथ मरेंगे, हमने कसमें खाई थी
पचास वर्ष के संग-सफर में, तुम जो चली गई।
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो चली गई।
नहीं कटती है रातें मेरी, सुख रहा है मेरा गात
अँखियाँ नीर बहाती रहती, तुम जो चली गई।
किससे मन की बात करूं,साथ तुम्हारा रहा नहीं
उमड़ पड़ा है दुःख का सागर, तुम जो चली गई।
अंत समय मैं साथ नहीं था, सदा रहेगा इसका गम
तुम भी थोड़ा धीरज रखती, बिना मिले ही चली गई।
विछोह का दर्द
तुम्हारे विछोह के बाद
अब मुझे कुछ भी
अच्छा नहीं लगता
दाल पनीली लगती है
सब्जियाँ बेस्वाद लगती है
कोई मिलने आता है तो
मुलाकातें बेगानी लगती है
दिन अनमना और
रातें पहाड़ लगती है
नहीं करता मन अब
बरामदे में बैठ चाय पीने का
पार्क में जाकर अकेले
घूम आने का
विंध्य से लेकर हिमालय तक
गंगा से लेकर वोल्गा तक
न जाने कितने पहाड़
और कितनी नदियाँ
तुम्हारे संग जीवन में पार की
लेकिन आज
तुम्हारे विछोह के दर्द को
पार पाना मेरे लिए
भारी हो गया।
जिंदगी को जी लिया था
रिमझिम बरसता सावन
रंग-गंध वाला बसंत
फूलों वाली चैती हवाए
कितना कुछ देखा था हमने
वो महकी-महकी रातें
वो गहरी-गहरी साँसें
वो बहकी-बहकी बातें
कितना कुछ जिया था हमने
कितना कुछ जिया था हमने
चाँदी सी मोहक अदाएं
दीप सी दमकती आभा
कोयल सी मीठी आवाज
कितना कुछ दिया था तुमने
तुम तो मेरे जीवन में
ईश्वर का एक वरदान थी
ईश्वर का एक वरदान थी
मैंने तो जीवन उसी में जी लिया था
जिन्ह लम्हों में संग दिया था तुमने।
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
भूल गया मैं सब रंगरलियाँ
मुरझाई खुशियों की बगियाँ
जीवन की झांझर बेला में
पाई मैंने विछोह की पीड़ा
लाख बार मन को समझाया
मुरझाई खुशियों की बगियाँ
जीवन की झांझर बेला में
पाई मैंने विछोह की पीड़ा
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
अपने विरह-दर्द की पीड़ा। लाख बार मन को समझाया
फिर भी मन नहीं भरमाया
आँखों से अश्रु जल बहता
कैसे सहु वियोग की पीड़ा
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
अपने विरह-दर्द की पीड़ा।
डुब गया सूरज खुशियों का
संग-सफर छूटा जीवन का
डुब गया सूरज खुशियों का
संग-सफर छूटा जीवन का
तुम तो मुक्त हुई जीवन से
मैंने पाई तन्हाई की पीड़ा
मैंने पाई तन्हाई की पीड़ा
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
अपने विरह-दर्द की पीड़ा।
छलक पड़ती है आँखें
आज से
ठीक नौ महीने पहले
काल के क्रूर हाथों ने
तुमको छीन लिया था मुझ से
जब तक
तुम्हारा साथ रहा
भोर की उजली धूप की तरह
सुख लिपटा रहा मुझ से
सारी खुशियाँ
रही मेरी मुट्ठी में
हथेलियाँ छोटी पड़ जाती थी
थामने को सुख
लेकिन आज सुख फिसल गया
जीवन से पारे की तरह
छूप गया रुठ कर
जीवन की अंधेरी राहों में
याद आ रहा है
तुम्हारा हँसता चेहरा और
गजल कहती प्यारी आँखें
दिवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर देख
छलक पड़ती है मेरी आँखें।
ठीक नौ महीने पहले
काल के क्रूर हाथों ने
तुमको छीन लिया था मुझ से
जब तक
तुम्हारा साथ रहा
भोर की उजली धूप की तरह
सुख लिपटा रहा मुझ से
सारी खुशियाँ
रही मेरी मुट्ठी में
हथेलियाँ छोटी पड़ जाती थी
थामने को सुख
लेकिन आज सुख फिसल गया
जीवन से पारे की तरह
छूप गया रुठ कर
जीवन की अंधेरी राहों में
याद आ रहा है
तुम्हारा हँसता चेहरा और
गजल कहती प्यारी आँखें
दिवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर देख
छलक पड़ती है मेरी आँखें।
साथी मेरा चला गया था
एक कलख है मन में मेरे
अंत समय में पास नहीं था
मीलों लम्बा सफर किया पर
तुम से बातें कर न सका था।
देख तुम्हारी नश्वर देह को
लिपट-लिपट कर मैं रोया था
जीवन भर तक त्रास रहेगी
यम से तुमको छिन न सका था।
आँखों में अश्रु जल भर कर
मरघट तक मैं साथ गया था
पंच तत्व में विलिन हुई तुम
मैं खाली हाथ चला आया था।
सारी खुशियाँ मिट गई मेरी
सुख का जीवन रित गया था
जीवन का अनमोल खजाना
अंत समय में पास नहीं था
मीलों लम्बा सफर किया पर
तुम से बातें कर न सका था।
देख तुम्हारी नश्वर देह को
लिपट-लिपट कर मैं रोया था
जीवन भर तक त्रास रहेगी
यम से तुमको छिन न सका था।
आँखों में अश्रु जल भर कर
मरघट तक मैं साथ गया था
पंच तत्व में विलिन हुई तुम
मैं खाली हाथ चला आया था।
सारी खुशियाँ मिट गई मेरी
सुख का जीवन रित गया था
जीवन का अनमोल खजाना
मेरे हाथों से निकल गया था।
मन की पीर
तुम जीवन के
राहे-सफर में मुझे
अकेला छोड़ कर चली गई
राहे-सफर में मुझे
अकेला छोड़ कर चली गई
तुमने यह भी नहीं सोचा कि
कल सुबह कौन पिलाएगा मुझे
कल सुबह कौन पिलाएगा मुझे
अदरक वाली चाय
कौन बनाएगा मेरे लिए
केर-सांगरी का साग और
मीठी आंच पर रोटी
कौन खिलायेगा
दुपहर में चाय के साथ
मीठी-मीठी केक और पेस्ट्री
कौन घुमायेगा
मेरे बालों में अपनी
नरम-नरम अँगुलियाँ
कौन फंसेगा
मेरे संग जीवन की
शतरंजी चालों में
कौन घुमायेगा
मेरे बालों में अपनी
नरम-नरम अँगुलियाँ
कौन फंसेगा
मेरे संग जीवन की
शतरंजी चालों में
बिना तुम्हारे
कैसे पूरी कर पाऊंगा
कैसे पूरी कर पाऊंगा
जीवन की अधूरी कविता को
कैसे भूल पाऊंगा
तुम्हारे संग देखे
जीवन के ख्वाबों को।
कैसे भूल पाऊंगा
तुम्हारे संग देखे
जीवन के ख्वाबों को।
अब तुम्हारी याद में
राह सफर में रहा अकेला, अब जीना तन्हाई में
आँखों से अश्रु जल बहता, अब तुम्हारी याद में।
दुःख मेरा क्या बतलाऊँ,दिल रोता है रातों में
गर्मी हो या सर्दी हो, क्या बसंत और क्या सावन
हर मौसम पतझड़ लगता, अब तुम्हारी याद में।
जब से तुम बिछुड़ी मुझसे, नींद खो गई रातों में
आँखों से अश्रु जल बहता, अब तुम्हारी याद में।
दुःख मेरा क्या बतलाऊँ,दिल रोता है रातों में
खोया-खोया मन रहता है,अब तुम्हारी याद में।
हर मौसम पतझड़ लगता, अब तुम्हारी याद में।
एक तुम्हारे प्यार बिना, नीरस फीका यह जीवन
पीली पड़ गई खुशियाँ सारी,अब तुम्हारी याद में।
दिल तड़पता रहता मेरा, अब तुम्हारी याद में।
मंजिलें अब जुदा हो गई, अंजानी अब राहें हैं
मन रहता है सूना-सूना, अब तुम्हारी याद में।
सोमवार, 26 नवंबर 2018
तुम बसी हो मेरी यादों में
तुम्हारे लौट आने की
पगध्वनि सुनने मेरे कान
बिना सोये जागते रहते हैं
विरह के दिन भी
रात-रात भर जाग कर
दिल का दर्द बाँटते रहते हैं
चाँद सितारों की दुनियाँ से
तुम्हारे लौट आने के इन्तजार में
दिल तड़फता रहता है
थक गयी है मेरी आँखें
तुम्हारा दीदार करने के लिए
दिल तरसता रहता है
तुम्हारे लौट आने के इन्तजार में
दिल तड़फता रहता है
थक गयी है मेरी आँखें
तुम्हारा दीदार करने के लिए
दिल तरसता रहता है
यादें नहीं छोडती साथ
कराती रहती है अहसास
तन्हाई के दर्द का
दिल के भावों को
लिखता रहता हूँ ताकि तुम्हें
अहसास हो मेरे दिले-दर्द का
कराती रहती है अहसास
तन्हाई के दर्द का
दिल के भावों को
लिखता रहता हूँ ताकि तुम्हें
अहसास हो मेरे दिले-दर्द का
फासले लम्बे हो गए
लेकिन तुम आज भी बसी हो।
मेरे दिल में
नज़रों से भले ही दूर हो
लेकिन आज भी आती हो
मेरी यादों में।
मेरे दिल में
नज़रों से भले ही दूर हो
लेकिन आज भी आती हो
मेरी यादों में।
एक बार लौट आओ
रंग बिरंगी तितलियाँ
आज भी पार्क में
फूलों की खुशबू आज
कोयलियाँ आज भी
आम्र कुंजों में
गीत गा रही है
आज भी पार्क में
उड़ रही है
गुनगुनी धुप आज भी
पार्क में पेड़ों को
चूम रही है
चूम रही है
फूलों की खुशबू आज
भी हवा को महका
रही है
कोयलियाँ आज भी
आम्र कुंजों में
गीत गा रही है
हवा आज भी
टहनियों की बाहें पकड़
टहनियों की बाहें पकड़
रास रचा रही है
लेकिन तुम्हारी
चूड़ियों की खनक आज
सुनाई नहीं दे रही है
तुम्हें मेरी कसम
मेरी हमदम
एक बार लौट आओ
अपनी चूड़ियों की
खनक एक बार फिर से
सुना जाओ।
लेकिन तुम्हारी
चूड़ियों की खनक आज
सुनाई नहीं दे रही है
तुम्हें मेरी कसम
मेरी हमदम
एक बार लौट आओ
अपनी चूड़ियों की
खनक एक बार फिर से
सुना जाओ।
खुशियाँ रूठ गई जीवन से
मुझ को सारा सुख देने में
तुमने अपना सुख माना
मेरी हर पीड़ा मुश्किल को
तुमने अपना दुःख माना
जब से तुम बिछुड़ हो मुझ से
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सच्ची सेवा और लगन से
पूर्ण रूप तुम रही समर्पित
हर पल मेरा साथ निभाया
जीवन सारा कर दिया अर्पित
जब से जुदा हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की
मेरे जीवन में साथ रही
प्रीत तुम्हारी अमृत बनके
गंगा जल सी सदा बही
जब से दूर हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सुषमा-सौरभ बिखरा कर
जीवन मेरा सफल बनाया
साथ दिया सुख-दुःख में मेरा
खुशियों का संसार सजाया
जब से अलग हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
तुमने अपना सुख माना
मेरी हर पीड़ा मुश्किल को
तुमने अपना दुःख माना
जब से तुम बिछुड़ हो मुझ से
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सच्ची सेवा और लगन से
पूर्ण रूप तुम रही समर्पित
हर पल मेरा साथ निभाया
जीवन सारा कर दिया अर्पित
जब से जुदा हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की
मेरे जीवन में साथ रही
प्रीत तुम्हारी अमृत बनके
गंगा जल सी सदा बही
जब से दूर हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सुषमा-सौरभ बिखरा कर
जीवन मेरा सफल बनाया
साथ दिया सुख-दुःख में मेरा
खुशियों का संसार सजाया
जब से अलग हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
याद तुम्हारी गीत बन गई
फ्रेम में जड़ी तुम्हारी
तस्वीर देख कर सोचता हूँ
बह रही होगी मन में
तस्वीर देख कर सोचता हूँ
आज भी दमक रही होगी
तुम्हारे भाल पर लाल बिंदिया
कन्धों पर लहरा रहे होंगे
सुनहरे रेशमी बाल
चहरे पर फूट रहा होगा
हँसी का झरना
चमक रही होगी मद भरी आँखें
चमक रही होगी मद भरी आँखें
झेंप रही होगी थोड़ी सी पलकें
देह से फुट रही होगी
संदली सौरभ
बह रही होगी मन में
मिलन की उमंग
बौरा रही होगी प्रीत चितवन
गूंज रहा होगा रोम-रोम में
प्यार का अनहद नाद
मेरे मन में आज भी
थिरकती है तुम्हारी यादें
महसूस करता हूँ
तुम्हारी खुशबु को
तुम्हारे अहसास को।
प्यार का अनहद नाद
मेरे मन में आज भी
थिरकती है तुम्हारी यादें
महसूस करता हूँ
तुम्हारी खुशबु को
तुम्हारे अहसास को।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)