सोमवार, 26 नवंबर 2018

तुम भी कहीं भीगती होगी

मेरे आस-पास आज भी
भीगी-भीगी है सुबह
बादल आज भी आए हैं
बरसाने पानी

पिछले तीन दिनों से
नहीं निकल रहा सूरज 
खिड़की पर हल्की धूप 
कभी-कभार
टपक पड़ती है भूल से 

शहर तो वैसा ही है 
पहले की तरह 
सड़के और गलियाँ
बन गई है ताल-तलैया
रेंग रही है गाड़ियाँ सड़कों पर 

भीगी हवाएं जब भी
तन से टकराती है
तुम्हारी कोमल छुअन की
मीठी यादें ताजा कर जाती है

गीली आँखों में
उमड़ पड़ते हैं यादों के बादल
मेरी आँखों की बरसात से
तुम भी कहीं भीगती होगी।

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