मंजिलें अब जुदा हो गई, अंजानी अब राहें हैं
जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो चली गई।
जीवन मेरा रीता-रीता,ऑंखें हैं अब भरी-भरी
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो चली गई।
किससे मन की बात करूं,साथ तुम्हारा रहा नहीं
अंत समय मैं साथ नहीं था, सदा रहेगा इसका गम
तुम भी थोड़ा धीरज रखती, बिना मिले ही चली गई।
जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो चली गई।
साथ जियेंगे साथ मरेंगे, हमने कसमें खाई थी
पचास वर्ष के संग-सफर में, तुम जो चली गई।
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो चली गई।
नहीं कटती है रातें मेरी, सुख रहा है मेरा गात
अँखियाँ नीर बहाती रहती, तुम जो चली गई।
किससे मन की बात करूं,साथ तुम्हारा रहा नहीं
उमड़ पड़ा है दुःख का सागर, तुम जो चली गई।
अंत समय मैं साथ नहीं था, सदा रहेगा इसका गम
तुम भी थोड़ा धीरज रखती, बिना मिले ही चली गई।
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