मंगलवार, 27 नवंबर 2018

छलक पड़ती है आँखें

आज से
ठीक नौ महीने पहले
काल के क्रूर हाथों ने
तुमको छीन लिया था मुझ से

जब तक
तुम्हारा साथ रहा
भोर की उजली धूप की तरह
सुख लिपटा रहा मुझ से

सारी खुशियाँ
रही मेरी मुट्ठी में
हथेलियाँ छोटी पड़ जाती थी
थामने को सुख

लेकिन आज सुख फिसल गया
जीवन से पारे की तरह
छूप गया रुठ कर
जीवन की अंधेरी राहों में

याद आ रहा है
तुम्हारा हँसता चेहरा और
गजल कहती प्यारी आँखें

दिवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर देख
छलक पड़ती है मेरी आँखें।

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