बुधवार, 28 नवंबर 2018

अब के बिछुड़े फिर न मिलेंगे

लहर सरीखा घुलना-मिलना, अपना रहता था  
  हवा सरीखा बहते रहना, अपना जीवन था
पलक झपकते छलिया सी, तुम तो चली गई

ऐसा नहीं चाहा था मैंने
बिच राह हम बिछुड़ेंगे
   यह नहीं सोचा था मैंने। 

बार-बार मिलना जैसे, उत्सव लगता था
मीठे-मीठे बोल तुम्हारे, अमृत लगता था
 गाते-गाते जीवन गीत, तुम तो चली गई

 ऐसा नहीं चाहा था मैंने   
  फासले ऐसे भी होंगे
  यह नहीं सोचा था मैंने। 

भोला-भोला रूप तुम्हारा, परियों से भी प्यारा था
चूड़ी-बिछिया-पायल से, खनकता सारा आँगन था  
   बुझ न सकी प्यास अधरों की, तुम तो चली गई

   ऐसा नहीं चाहा था मैंने   
 मुस्कानें मुझसे रुठेगी
    यह नहीं सोचा था मैंने।  

साँसों का निश्वास तुम्हारा, चन्दन जूही सुवास था
  आँखों में खिलता रहता, प्यार भरा मधुमास था
         रीत गया संगीत प्यार का, तुम जो चली गई 

ऐसा नहीं चाहा था मैंने 
अब के बिछुड़े फिर न मिलेंगे           
 यह नहीं सोचा था मैंने।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें