तुम्हारे बिछुड़ते ही मेरी उम्र ढलने लग गई
तुम रहती तो उम्र का अहसास नहीं होता।
मेरे सुरमई धुप वाले दिनों का अंत हो गया
अब मुझ से प्यार भरा गीत नहीं गाया जाता।
तुम्हारे विछोह का दर्द रातों में रुलाता है मुझे
भीगता रहता है तकिया पर दीदार नहीं होता।
भरी बहारों में तुम मुझे छोड़ कर चली गई
तुम रहती तो जीवन में पतझड़ नहीं आता ।
तुम्हारे जाते ही खुशियों की शाम ढल गई
बहते हैं आँखों से अश्रु दर्द कम नहीं होता।
एकाकी जीवन जीना बड़ा कठिन हो गया
अब मुझे से तुम्हारा वियोग सहन नहीं होता।
तुम्हारा निश्छल प्रेम मुझे सदा याद रहेगा
सोचता हूँ हर कोई तुमसा क्यों नहीं होता।
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