यूँ तो चमन में बहुत से फूल खिले हैं मगर
मेरी चाहत का फूल अब नजर नहीं आता।
मेरी चाहत का फूल अब नजर नहीं आता।
तुम तो बिछुड़ गई जीवन के राहेसफर में
मुझे तो बिना तुम्हारे जीना भी नहीं आता।
दिन ढ़लते ही जलने लगते हैं यादों के दीप
अब तो रातों में सुहाना सपना भी नहीं आता।
संसार में भरे पड़े हैं सुन्दर से सुन्दर नज़ारे मगर तुम्हारा निश्छल प्रेम नजर नहीं आता।
तुम से मिले विरह के घावों को मैं सह रहा हूँ
लोग कहते हैं इस दर्द का मरहम नहीं आता।
जीवन में छा गए हैं तन्हाई और ग़मों के अँधेरे
सांसे चलती है मगर जीने का मजा नहीं आता।
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