बुधवार, 21 नवंबर 2018

जीवन की परिभाषा

आँख का खुलना
और बंद होना
इतने में ही तो सिमट जाता है जीवन

साँस का आना
और दूसरी का जाना
इतने में ही तो गुजर जाता है जीवन

बिजली का चमकना
और लुप्त होना
इतने में ही तो लुट जाता है जीवन

बून्द का गरम तवे पर
गिरना और मिटना
इतने में ही तो सिमट जाता है जीवन

जलते दीपक को 
हवा का झोंका लगना और बुझना
इतने में ही तो बुझ जाता है जीवन

बंद मुट्ठी में 
रेत को पकड़ना और फिसलना
इतने में ही तो रीत जाता है जीवन।

सागर की लहरों का
किनारे से टकराना और लौटना
इतने में ही तो लौट जाता
है जीवन।


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