मंगलवार, 27 नवंबर 2018

आज तुम नहीं थी

सुबह का सूरज
आज भी निकला था 
चाँद आज भी चांदनी संग आया था
तारे आज भी झिलमिला रहे थे
लेकिन आज तुम नहीं थी। 

बगीचे में फूल आज भी खिले थे 
तितलियाँ आज भी 
फूलों पर मंडरा रही थी
भँवरें आज भी गुनगुना रहे थे 
लेकिन आज तुम नहीं थी। 

बच्चे आज भी गलियों में खेल रहे थे 
दरवाजे पर काली गाय
आज भी रम्भा रही थी
कबूतर आज भी छत पर आए थे 
लेकिन आज तुम नहीं थी। 

पूजा की घंटियों के संग
सवेरा आज भी हुआ था 
मंदिर में आरती आज भी गाई गई थी 
तुलसी चौरे पर आज भी
दीपक जला था 
लेकिन आज तुम नहीं थी। 



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