मन का आँगन सूना हो गया,जीवन वैभव चला गया
सुख गया सुखों का झरना, सहपथिक भी चला गया।
आँखों से अश्रु ढलके,जब-जब उसकी यादें आई।
सुख गया सुखों का झरना, सहपथिक भी चला गया।
साथ रह गयी केवल यादें, उजले पल सब चले गए
खुशियाँ निकल गई जीवन से,सुन्दर सपने टूट गए।
रीत गया संगीत प्यार का, रुठ गई कविता मन की
यादों में अब शेष रह गई, सुधियाँ चन्दन के वन की।
हरदम उसकी यादें आती, दिल तड़पता रातों में मेरे मन की पीड़ा का अब, दर्द झलकता आँखों में।
बीत गया सुखमय जीवन,अन्तस् पीड़ा भर आई
गीत अधूरे रह गए मेरे, मन की मृदुल कल्पना खोई
जीवन पथ पर चलते - चलते, सांझ सुहानी ढल गई।
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