भूल गया मैं सब रंगरलियाँ
मुरझाई खुशियों की बगियाँ
जीवन की झांझर बेला में
पाई मैंने विछोह की पीड़ा
लाख बार मन को समझाया
मुरझाई खुशियों की बगियाँ
जीवन की झांझर बेला में
पाई मैंने विछोह की पीड़ा
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
अपने विरह-दर्द की पीड़ा। लाख बार मन को समझाया
फिर भी मन नहीं भरमाया
आँखों से अश्रु जल बहता
कैसे सहु वियोग की पीड़ा
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
अपने विरह-दर्द की पीड़ा।
डुब गया सूरज खुशियों का
संग-सफर छूटा जीवन का
डुब गया सूरज खुशियों का
संग-सफर छूटा जीवन का
तुम तो मुक्त हुई जीवन से
मैंने पाई तन्हाई की पीड़ा
मैंने पाई तन्हाई की पीड़ा
कैसे मैं तुम को लिख भेजूं
अपने विरह-दर्द की पीड़ा।
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