शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

हो सके तो लौट आओ

आज पंद्रह महीने बीत गए, तुमसे बिछुड़े हुए
आँखें बिछी है राह में, हो सके तो लौट आओ।

                                                     जीवन के अंतिम पहर में, तुम तो बिछुड़ गई
                                                     तन्हा हो गया जीवन, हो सके तो लौट आओ।       
        
यादों का सिलसिला दे कर, तुम तो चली गयी
मिट गए सारे ख्वाब, हो सके तो लौट आओ।  

तुम रहती हो मुझ में, गहरे बहुत गहरे कहीं
पुकारता रहता है मन, हो सके तो लौट आओ।

ढलकते रहते हैं अश्रु, भीगता रहता है तकिया 
जीवन की ढलान पर, हो सके तो लौट आओ।       

दिन यादों में और रातें, रोने में कट जाती है 
खोया रहता है मन, हो सके तो लौट आओ। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें