देवदूत उतरा अम्बर से
कांप उठा अनजाने डर से
तन्हा दिल मेरा घबराया
छाई उदासी मन में
मेरे अंतर्मन की पीड़ा, झर-झर कर नयनों से बहती
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
देख तुम्हारी नश्वर देह को
अवसाद निराशा छाई सबको
मेरे मन के उपर छाया
अंधकार पल भर में
मुझको दिख रही थी आज, अपनी प्यारी दुनिया ढहती
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
मधुऋतु में पतझड़ छाया
रोम-रोम मेरा अकुलाया
तन्हाई का जीवन पाया
तन्हाई का जीवन पाया
जीवन के झांझर में
एक नजर मुझे देख कर, कुछ अपने मन की कह जाती
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
प्रिय कुछ तो मुझको कहती।
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